हाल-ए-दिल अग़्यार से कहना पड़ा
गुल का क़िस्सा ख़ार से कहना पड़ा
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Anwar Masood
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(312) Peoples Rate This
हिज्र में हो गया विसाल का क्या
उन को आती थी नींद और मुझ को
उड़ा कर ख़ाक हम काबे जो पहुँचे
बुतों में नूर-ए-ज़ात-ए-किब्रिया मालूम होता है
मिरे उन के तअ'ल्लुक़ पर कोई अब कुछ नहीं कहता
नहीं मंज़ूर जब मिलना तो वा'दे की ज़रूरत क्या
सूरत तो एक ही थी दो घर हुए तो क्या है
रूह देती रही तर्ग़ीब-ए-तअ'ल्ली बरसों
मकतब की आशिक़ी भी तारीख़-ए-ज़िंदगी थी
दिल का मोआ'मला जो सुपुर्द-ए-नज़र हुआ
आरज़ू दिल में बनाए हुए घर है भी तो क्या
दिल उन को मुफ़्त देने में दुश्मन को रश्क क्यूँ