उड़ा कर ख़ाक हम काबे जो पहुँचे
हक़ीक़त खुल गई कू-ए-बुताँ की
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मोहब्बत को कहते हो बरती भी थी
हाल-ए-दिल अग़्यार से कहना पड़ा
उठते जोबन पे खिल पड़े गेसू
जो पूछा मुँह दिखाने आप कब चिलमन से निकलेंगे
जो पूछा दिल हमारा क्यूँ लिया तो नाज़ से बोले
आशिक़ों की रूह को ता'लीम-ए-वहदत के लिए
मोहब्बत इब्तिदा में कुछ नहीं मा'लूम होती है
गए हम दैर से काबे मगर ये कह के फिर आए
जब मैं ने कहा दिल मिरा पामाल किया क्यूँ
हस्ती-ए-ग़ैर का सज्दा है मोहब्बत में गुनाह
किसी ने न देखा तिरे हुस्न को
तमन्ना इक तरह की जान है जो मरते दम निकले