ये तो समझा मैं ख़ुदा को कि ख़ुदा है लेकिन
ये न समझा कि समझ में मिरी क्यूँकर आया
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मेरे अरमाँ वो सुधारे यूँ के यूंहीं रह गए
तरीक़ याद है पहले से दिल लगाने का
मिरे गुनाह ज़ियादा हैं या तिरी रहमत
वक़्त-ए-आख़िर क़ज़ा से बिगड़ेगी
असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
तू मुझे किस के बनाने को मिटा बैठा है
तू न आएगा तो हो जाएँगी ख़ुशियाँ सब ख़ाक
चाहत की नज़र आप से डाली भी गई है
मोहब्बत का असर फिर देखना मरने तो दो मुझ को
उन्हों ने क्या न किया और क्या नहीं करते
किसी के दर्द-ए-मोहब्बत ने उम्र भर के लिए
मोहब्बत बा'इस-ए-ना-मेहरबानी होती जाती है