तरीक़ याद है पहले से दिल लगाने का
उसी का मैं भी हूँ मजनूँ था जिस घराने का
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यहाँ से जब गई थी तब असर पर ख़ार खाए थी
किसी ने न देखा तिरे हुस्न को
वो करेंगे वस्ल का वा'दा वफ़ा
उठे उठ कर चले चल कर थमे थम कर कहा होगा
न उस के दामन से मैं ही उलझा न मेरे दामन से ये ही अटकी
बुत-कदे में तो तुझे देख लिया करता था
बुत-ख़ाने में क्या याद-ए-इलाही नहीं मुमकिन
बुरा हूँ मैं जो किसी की बुराइयों में नहीं
उड़ा कर ख़ाक हम काबे जो पहुँचे
मेरा दिल-ए-'मुज़्तर' बुत-ए-काफ़िर से लगा है
ख़्वाहिश-ए-दीद पे इंकार से आते हैं मज़े
इश्क़ का काँटा हमारे दिल में ये कह कर चुभा