बुत-कदे में तो तुझे देख लिया करता था
ख़ास काबे में तो सूरत भी दिखाई न गई
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उस का भी एक वक़्त है आने दो मौत को
माइल-ए-सोहबत-ए-अग़्यार तो हम हैं तुम कौन
मोहब्बत कर के लाखों रंज झेले बेकली पाई
पड़ा हूँ इस तरह उस दर पे 'मुज़्तर'
बाज़ू पे रख के सर जो वो कल रात सो गया
तेरे मूए-ए-मिज़ा खटकते हैं
धोके से बुला कर जो मिला था तो वो मुझ से
जा के अब नार-ए-जहन्नम की ख़बर ले ज़ाहिद
दम-ए-ख़्वाब-ए-राहत बुलाया उन्हों ने तो दर्द-ए-निहाँ की कहानी कहूँगा
हम उम्र के साथ हैं सफ़र में
नहीं हूँ मैं तो तिरी बंदगी के क्या मा'नी
मिरे उन के तअ'ल्लुक़ पर कोई अब कुछ नहीं कहता