हाल उस ने हमारा पूछा है
पूछना अब हमारे हाल का क्या
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किसी का जल्वा-ए-रंगीं ये कहता है इन्हें पूजो
हसरतों को कोई कहाँ रक्खे
आप क्यूँ बैठे हैं ग़ुस्से में मिरी जान भरे
किसी के दर्द-ए-मोहब्बत ने उम्र भर के लिए
पूछा कि वज्ह-ए-ज़िंदगी बोले कि दिलदारी मिरी
किसी के कम हैं किसी के बहुत मगर ज़ाहिद
आतिश-ए-हुस्न से इक आब है रुख़्सारों में
ये पैदा होते ही रोना सरीहन बद-शुगूनी है
वक़्त-ए-आख़िर क़ज़ा से बिगड़ेगी
मेरे अरमाँ वो सुधारे यूँ के यूंहीं रह गए
फ़ना के बा'द इस दुनिया में कुछ बाक़ी नहीं रहता
गवाह-ए-वस्ल-ए-अदू सर झुका के देख न लो