ये पैदा होते ही रोना सरीहन बद-शुगूनी है
मुसीबत में रहेंगे और मुसीबत ले के उट्ठेंगे
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मोहब्बत बा'इस-ए-ना-मेहरबानी होती जाती है
वो मज़ाक़-ए-इश्क़ ही क्या कि जो एक ही तरफ़ हो
इक हम कि हम को सुब्ह से है शाम की ख़ुशी
वक़्त-ए-आख़िर याद है साक़ी की मेहमानी मुझे
यूँ कहीं डूब के मर जाऊँ तो अच्छा है मगर
मोहब्बत का असर फिर देखना मरने तो दो मुझ को
ज़ेर-ए-ज़मीं रहूँ कि तह-ए-आसमाँ रहूँ
मेरे अश्कों की रवानी को रवानी तो कहो
मेरा रंग रूप बिगड़ गया मिरा यार मुझ से बिछड़ गया
जलेगा दिल तुम्हें बज़्म-ए-अदू में देख कर मेरा
ख़ुदा भी जब न हो मालूम तब जानो मिटी हस्ती
आह-ए-रसा ख़ुदा के लिए देख-भाल के