मेरा रंग रूप बिगड़ गया मिरा यार मुझ से बिछड़ गया
जो चमन ख़िज़ाँ से उजड़ गया मैं उसी की फ़स्ल-ए-बहार हूँ
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निगाह-ए-यार मिल जाती तो हम शागिर्द हो जाते
जा के अब नार-ए-जहन्नम की ख़बर ले ज़ाहिद
ख़ुदा भी जब न हो मालूम तब जानो मिटी हस्ती
आओ तो मेरे आइना-ए-दिल के सामने
न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ
आतिश-ए-हुस्न से इक आब है रुख़्सारों में
पर्दा-ए-दर्द में आराम बटा करते हैं
किसी बुत की अदा ने मार डाला
उन्हीं लोगों की बदौलत ये हसीं अच्छे हैं
पर्दे वाले भी कहीं आते हैं घर से बाहर
चूकी नज़र जो ज़ाहिद-ए-ख़ाना-ख़राब की