जलेगा दिल तुम्हें बज़्म-ए-अदू में देख कर मेरा
धुआँ बन बन के अरमाँ महफ़िल-ए-दुश्मन से निकलेंगे
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ये पैदा होते ही रोना सरीहन बद-शुगूनी है
तसव्वुर ख़ाना-आबादी करेगा
दम-ए-ख़्वाब-ए-राहत बुलाया उन्हों ने तो दर्द-ए-निहाँ की कहानी कहूँगा
हम उम्र के साथ हैं सफ़र में
दिल क्या करे जो राज़ मोहब्बत का खुल गया
सुनोगे हाल जो मेरा तो दाद क्या दोगे
उम्र सब ज़ौक़-ए-तमाशा में गुज़ारी लेकिन
ऐ बुतो रंज के साथी हो न आराम के तुम
मेरे महबूब तुम हो यार तुम हो दिल-रुबा तुम हो
ये तुम बे-वक़्त कैसे आज आ निकले सबब क्या है
न बुलवाया न आए रोज़ वा'दा कर के दिन काटे
मैं तिरी राह-ए-तलब में ब-तमन्ना-ए-विसाल