मैं तिरी राह-ए-तलब में ब-तमन्ना-ए-विसाल
महव ऐसा हूँ कि मिटने का भी कुछ ध्यान नहीं
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Gulzar
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(328) Peoples Rate This
मिरे अरमान मायूसी के पाले पड़ते जाते हैं
यूँ कहीं डूब के मर जाऊँ तो अच्छा है मगर
उठते जोबन पे खिल पड़े गेसू
असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
न रो इतना पराए वास्ते ऐ दीदा-ए-गिर्यां
आओ तो मेरे आइना-ए-दिल के सामने
क्या असर ख़ाक था मजनूँ के फटे कपड़ों में
मैं मसीहा उसे समझता हूँ
ये तुम बे-वक़्त कैसे आज आ निकले सबब क्या है
तसव्वुर ख़ाना-आबादी करेगा
न बुलवाया न आए रोज़ वा'दा कर के दिन काटे
मेरा दिल-ए-'मुज़्तर' बुत-ए-काफ़िर से लगा है