मैं नहीं हूँ नग़्मा-ए-जाँ-फ़ज़ा मुझे सुन के कोई करेगा क्या
मैं बड़े बिरोग की हूँ सदा मैं बड़े दुखी की पुकार हूँ
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जान ये कह के बुत-ए-होश-रुबा ने ले ली
अपने अहद-ए-वफ़ा को भूल गए
जो पूछा दिल हमारा क्यूँ लिया तो नाज़ से बोले
फूंके देता है किसी का सोज़-ए-पिन्हानी मुझे
मैं तिरी राह-ए-तलब में ब-तमन्ना-ए-विसाल
मकतब की आशिक़ी भी तारीख़-ए-ज़िंदगी थी
हज़ारों हुस्न वाले इस ज़मीं में दफ़न हैं 'मुज़्तर'
ऐ इश्क़ कहीं ले चल ये दैर-ओ-हरम छूटें
उठते जोबन पे खिल पड़े गेसू
तुम्हें चाहूँ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ
जफ़ा से वफ़ा मुस्तरद हो गई
तेरी रहमत का नाम सुन सुन कर