दम-ए-ख़्वाब-ए-राहत बुलाया उन्हों ने तो दर्द-ए-निहाँ की कहानी कहूँगा
मिरा हाल लिखने के क़ाबिल नहीं है अगर मिल गए तो ज़बानी कहूँगा
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वो कहते हैं कि क्यूँ जी जिस को तुम चाहो वो क्यूँ अच्छा
मिरे अरमान मायूसी के पाले पड़ते जाते हैं
उम्र सब ज़ौक़-ए-तमाशा में गुज़ारी लेकिन
असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
मकतब की आशिक़ी भी तारीख़-ए-ज़िंदगी थी
दूर क्यूँ जाऊँ यहीं जल्वा-नुमा बैठा है
माइल-ए-सोहबत-ए-अग़्यार तो हम हैं तुम कौन
अपने अहद-ए-वफ़ा को भूल गए
उस से कह दो कि वो जफ़ा न करे
कूचा-ए-यार से यारब न उठाना हम को
वफ़ा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते
न उस के दामन से मैं ही उलझा न मेरे दामन से ये ही अटकी