वक़्त दो मुझ पर कठिन गुज़रे हैं सारी उम्र में
इक तिरे आने से पहले इक तिरे जाने के बाद
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(438) Peoples Rate This
जब उन की पतियाँ बिखरें तो समझे मस्लहत उस की
ये तुम बे-वक़्त कैसे आज आ निकले सबब क्या है
मैं तिरी राह-ए-तलब में ब-तमन्ना-ए-विसाल
रुख़ किसी का नज़र नहीं आता
ख़्वाहिश-ए-दीद पे इंकार से आते हैं मज़े
हम से अच्छा नहीं मिलने का अगर तुम चाहो
दम-ए-ख़्वाब-ए-राहत बुलाया उन्हों ने तो दर्द-ए-निहाँ की कहानी कहूँगा
वो शायद हम से अब तर्क-ए-तअल्लुक़ करने वाले हैं
लुत्फ़-ए-क़ुर्बत है मय-परस्ती में
उस से कह दो कि वो जफ़ा न करे
मोहब्बत इब्तिदा में कुछ नहीं मा'लूम होती है
मुसीबत और लम्बी ज़िंदगानी