रंज-ए-ग़ुर्बत में देख कर मुझ को
दिल-ए-सहरा भी बाग़ बाग़ हुआ
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कुछ न पूछो कि क्यूँ गया काबे
क़िबला बन जाए जहाँ तू कोई पत्थर रख दे
अब कौन फिरे कू-ए-बुत-ए-दुश्मन-ए-दीं से
किसी के दर्द-ए-मोहब्बत ने उम्र भर के लिए
किसी बुत की अदा ने मार डाला
गए हम दैर से काबे मगर ये कह के फिर आए
ज़ेर-ए-ज़मीं रहूँ कि तह-ए-आसमाँ रहूँ
चाहत की तमन्ना से कोई आँच न आई
मिरे उन के तअ'ल्लुक़ पर कोई अब कुछ नहीं कहता
इकट्ठे कर के तेरी दूसरी तस्वीर खींचूँगा
उस से कह दो कि वो जफ़ा न करे
आइना देख कर ग़ुरूर फ़ुज़ूल