तुम क्यूँ शब-ए-जुदाई पर्दे में छुप गए हो
क़िस्मत के और तारे सब आसमान पर हैं
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उन्हीं लोगों की बदौलत ये हसीं अच्छे हैं
मुसीबत और लम्बी ज़िंदगानी
जा के अब नार-ए-जहन्नम की ख़बर ले ज़ाहिद
आतिश-ए-हुस्न से इक आब है रुख़्सारों में
सहें कब तक जफ़ाएँ बेवफ़ाई देखने वाले
बाज़ू पे रख के सर जो वो कल रात सो गया
कोई ले ले तो दिल देने को मैं तय्यार बैठा हूँ
जान देना नहीं किसे मंज़ूर
कूचा-ए-यार से यारब न उठाना हम को
सूरत तो एक ही थी दो घर हुए तो क्या है
ज़ुल्फ़ को क्यूँ जकड़ के बाँधा है
मेरा रंग रूप बिगड़ गया मिरा यार मुझ से बिछड़ गया