जान देना नहीं किसे मंज़ूर
तू किसी काम से तो आएगा
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बुत-कदे में तो तुझे देख लिया करता था
मियान-ए-हश्र ये काफ़िर बड़े इतराए फिरते हैं
मिरा रोना हँसी-ठट्ठा नहीं है
मोहब्बत इब्तिदा में कुछ नहीं मा'लूम होती है
ये नक़्शा है कि मुँह तकने लगा है मुद्दआ' मेरा
अहबाब-ओ-अक़ारिब के बरताव कोई देखे
मेरी अरमान भरी आँख की तासीर है ये
ज़ाहिद तो बख़्शे जाएँ गुनहगार मुँह तकें
साक़ी वो ख़ास तौर की ता'लीम दे मुझे
पर्दा-ए-दर्द में आराम बटा करते हैं
जितने बुत हैं मैं सब पे मरता हूँ
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता