साक़ी ने लगी दिल की इस तरह बुझा दी थी
इक बूँद छिड़क दी थी इक बूँद चखा दी थी
Habib Jalib
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Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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वो क़ुदरत के नमूने क्या हुए जो उस में पहले थे
निगाह-ए-यार मिल जाती तो हम शागिर्द हो जाते
उन को आती थी नींद और मुझ को
आप क्यूँ बैठे हैं ग़ुस्से में मिरी जान भरे
अगर तक़दीर सीधी है तो ख़ुद हो जाओगे सीधे
किसी के कम हैं किसी के बहुत मगर ज़ाहिद
दुआ से कुछ न हुआ इल्तिजा से कुछ न हुआ
इस बात का मलाल नहीं है कि दिल गया
तू न आएगा तो हो जाएँगी ख़ुशियाँ सब ख़ाक
उन्हीं लोगों की बदौलत ये हसीं अच्छे हैं
उन का इक पतला सा ख़ंजर उन का इक नाज़ुक सा हाथ
मोहब्बत बुत-कदे में चल के उस का फ़ैसला कर दे