काबे में हम ने जा के कुछ और हाल देखा
जब बुत-कदे में पहुँचे सूरत ही दूसरी थी
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तसव्वुर में तिरा दर अपने सर तक खींच लेता हूँ
मोहब्बत का असर फिर देखना मरने तो दो मुझ को
मेरा रंग रूप बिगड़ गया मिरा यार मुझ से बिछड़ गया
मोहब्बत में किसी ने सर पटकने का सबब पूछा
इतने अच्छे हो कि बस तौबा भली
ठहरना दिल में कुछ बेहतर न जाना
मेरे महबूब तुम हो यार तुम हो दिल-रुबा तुम हो
जान ये कह के बुत-ए-होश-रुबा ने ले ली
आइना देख कर ग़ुरूर फ़ुज़ूल
ख़ुदा भी जब न हो मालूम तब जानो मिटी हस्ती
ईसा कभी न जाते लेकिन तुम्हारे ग़म में
ऐ हिना रंग-ए-मोहब्बत तो है मुझ में भी निहाँ