सदमा बुत-ए-काफ़िर की मोहब्बत का न पूछो
ये चोट तो काबे ही के पत्थर से लगी है
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Parveen Shakir
Wasi Shah
Gulzar
Jaun Eliya
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(337) Peoples Rate This
फ़ना के बा'द इस दुनिया में कुछ बाक़ी नहीं रहता
याद करना ही हम को याद रहा
मोहब्बत इब्तिदा में कुछ नहीं मा'लूम होती है
जब कहा मैं ने कि मर मर के बचे हिज्र में हम
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता
दम-ए-आख़िर मुसीबत काट दो बहर-ए-ख़ुदा मेरी
जब कहा मैं हूँ तिरे इश्क़ में बदनाम कि तू
आइना देख कर ग़ुरूर फ़ुज़ूल
जब कहा तीर तिरी आँख ने अक्सर मारा
बुत-कदे में तो तुझे देख लिया करता था
वो पहली सब वफ़ाएँ क्या हुईं अब ये जफ़ा कैसी
मोहब्बत बुत-कदे में चल के उस का फ़ैसला कर दे