तेरे घर आएँ तो ईमान को किस पर छोड़ें
हम तो काबे ही में ऐ दुश्मन-ए-दीं अच्छे हैं
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Wasi Shah
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(306) Peoples Rate This
इस से पहले मैं कभी आबाद घर बस्ती में था
ऐ ख़ुदा दुनिया पे अब क़ब्ज़ा बुतों का चाहिए
दिल का मोआ'मला जो सुपुर्द-ए-नज़र हुआ
वो कहते हैं ये सारी बेवफ़ाई है मोहब्बत की
पूछा कि वज्ह-ए-ज़िंदगी बोले कि दिलदारी मिरी
ख़ुदा भी जब न हो मालूम तब जानो मिटी हस्ती
हज़ारों हुस्न वाले इस ज़मीं में दफ़न हैं 'मुज़्तर'
हौसला इम्तिहान से निकला
मियान-ए-हश्र ये काफ़िर बड़े इतराए फिरते हैं
क़ासिद ने ख़बर आमद-ए-दिलबर की उड़ा दी
दिल क्या करे जो राज़ मोहब्बत का खुल गया
तुम अगर चाहो तो मिट्टी से अभी पैदा हों फूल