तड़प ही तड़प रह गई सिर्फ़ बाक़ी
ये क्या ले लिया मेरे पहलू से तू ने
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दम-ए-ख़्वाब-ए-राहत बुलाया उन्हों ने तो दर्द-ए-निहाँ की कहानी कहूँगा
वो क़ुदरत के नमूने क्या हुए जो उस में पहले थे
आप क्यूँ बैठे हैं ग़ुस्से में मिरी जान भरे
निछावर बुत-कदे पर दिल करूँ का'बा तो कोसों है
आतिश-ए-हुस्न से इक आब है रुख़्सारों में
वो शायद हम से अब तर्क-ए-तअल्लुक़ करने वाले हैं
तरीक़ याद है पहले से दिल लगाने का
जिए जाते हैं पस्ती में तिरे सारे जहाँ वाले
हज़ारों हुस्न वाले इस ज़मीं में दफ़न हैं 'मुज़्तर'
इतने अच्छे हो कि बस तौबा भली
तुम क्यूँ शब-ए-जुदाई पर्दे में छुप गए हो