जनाब-ए-ख़िज़्र राह-ए-इश्क़ में लड़ने से क्या हासिल
मैं अपना रास्ता ले लूँ तुम अपना रास्ता ले लो
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मोहब्बत बा'इस-ए-ना-मेहरबानी होती जाती है
मैं तिरी राह-ए-तलब में ब-तमन्ना-ए-विसाल
आरज़ू दिल में बनाए हुए घर है भी तो क्या
मकतब की आशिक़ी भी तारीख़-ए-ज़िंदगी थी
रह के पर्दे में रुख़-ए-पुर-नूर की बातें न कर
किसी का जल्वा-ए-रंगीं ये कहता है इन्हें पूजो
पूछा कि वज्ह-ए-ज़िंदगी बोले कि दिलदारी मिरी
इक पर्दा-नशीं की आरज़ू है
अगर तुम दिल हमारा ले के पछताए तो रहने दो
रवाँ रहता है किस की मौज में दिन रात तू पानी
पर्दा-ए-दर्द में आराम बटा करते हैं
ये नक़्शा है कि मुँह तकने लगा है मुद्दआ' मेरा