Ghazals of Muztar Khairabadi

Ghazals of Muztar Khairabadi
नाममुज़्तर ख़ैराबादी
अंग्रेज़ी नामMuztar Khairabadi
जन्म की तारीख1865
मौत की तिथि1927

ज़ेर-ए-ज़मीं रहूँ कि तह-ए-आसमाँ रहूँ

ये तुम बे-वक़्त कैसे आज आ निकले सबब क्या है

वो क़ज़ा के रंज में जान दें कि नमाज़ जिन की क़ज़ा हुई

वक़्त-ए-आख़िर याद है साक़ी की मेहमानी मुझे

वफ़ा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते

उस से कह दो कि वो जफ़ा न करे

उन्हों ने क्या न किया और क्या नहीं करते

उन्हीं लोगों की बदौलत ये हसीं अच्छे हैं

उम्र काटी बुतों की आड़ों में

तू मुझे किस के बनाने को मिटा बैठा है

तेरी रंगत बहार से निकली

सहें कब तक जफ़ाएँ बेवफ़ाई देखने वाले

सब शरीक-ए-सदमा-ओ-आज़ार कुछ यूँही से हैं

रुख़ किसी का नज़र नहीं आता

रवाँ रहता है किस की मौज में दिन रात तू पानी

रह के पर्दे में रुख़-ए-पुर-नूर की बातें न कर

पूछा कि वज्ह-ए-ज़िंदगी बोले कि दिलदारी मिरी

पर्दा-ए-दर्द में आराम बटा करते हैं

न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ

न बुलवाया न आए रोज़ वा'दा कर के दिन काटे

मुख़ालिफ़ है सबा-ए-नामा-बर कुछ और कहती है

मोहब्बत को कहते हो बरती भी थी

मोहब्बत कर के लाखों रंज झेले बेकली पाई

मोहब्बत इब्तिदा में कुछ नहीं मा'लूम होती है

मोहब्बत बा'इस-ए-ना-मेहरबानी होती जाती है

मेरे महबूब तुम हो यार तुम हो दिल-रुबा तुम हो

मेरे अरमाँ वो सुधारे यूँ के यूंहीं रह गए

मिरे अरमान मायूसी के पाले पड़ते जाते हैं

मकतब की आशिक़ी भी तारीख़-ए-ज़िंदगी थी

माइल-ए-सोहबत-ए-अग़्यार तो हम हैं तुम कौन

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