मिलने की तरह मुझ से वो पल भर नहीं मिलता
दिल उस से मिला जिस से मुक़द्दर नहीं मिलता
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मिस्ल-ए-सहरा है रिफ़ाक़त का चमन भी अब के
कोई आवाज़ न आहट न ख़याल ऐसे में
रचे-बसे हुए लम्हों से जब हिसाब हुआ
अदावतें थीं, तग़ाफ़ुल था, रंजिशें थीं बहुत
सबा का नर्म सा झोंका भी ताज़ियाना हुआ
दिया सा दिल के ख़राबे में जल रहा है मियाँ
वो हम-सफ़र था मगर उस से हम-नवाई न थी
दर्द की धूप से चेहरे को निखर जाना था
मैं इक शजर की तरह रह-गुज़र में ठहरा हूँ
मरहम-ए-वक़्त न एजाज़-ए-मसीहाई है