Ghazals of Nasir Kazmi (page 2)

Ghazals of Nasir Kazmi (page 2)
नामनासिर काज़मी
अंग्रेज़ी नामNasir Kazmi
जन्म की तारीख1923
मौत की तिथि1972

पत्थर का वो शहर भी क्या था

पर्दे में हर आवाज़ के शामिल तो वही है

पल पल काँटा सा चुभता था

ओ मेरे मसरूफ़ ख़ुदा

निय्यत-ए-शौक़ भर न जाए कहीं

'नासिर' क्या कहता फिरता है कुछ न सुनो तो बेहतर है

नए कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किस के लिए

नए देस का रंग नया था

मुसलसल बेकली दिल को रही है

मुमकिन नहीं मता-ए-सुख़न मुझ से छीन ले

मुझ को और कहीं जाना था

मैं ने जब लिखना सीखा था

मैं जब तेरे घर पहुँचा था

मैं हूँ रात का एक बजा है

कुंज कुंज नग़्मा-ज़न बसंत आ गई

कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर ही ले चलें

कुछ तो एहसास-ए-ज़ियाँ था पहले

किसी कली ने भी देखा न आँख भर के मुझे

ख़्वाब में रात हम ने क्या देखा

ख़मोशी उँगलियाँ चटख़ा रही है

कौन उस राह से गुज़रता है

कम-फ़ुर्सती-ए-ख़्वाब-ए-तरब याद रहेगी

जुर्म-ए-उम्मीद की सज़ा ही दे

जब ज़रा तेज़ हवा होती है

जब रात गए तिरी याद आई सौ तरह से जी को बहलाया

इस से पहले कि बिछड़ जाएँ हम

इन सहमे हुए शहरों की फ़ज़ा कुछ कहती है

होती है तेरे नाम से वहशत कभी कभी

हासिल-ए-इश्क़ तिरा हुस्न-ए-पशीमाँ ही सही

गिरफ़्ता-दिल हैं बहुत आज तेरे दीवाने

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