ओ मेरे मसरूफ़ ख़ुदा
गिरफ़्ता-दिल हैं बहुत आज तेरे दीवाने
शहर सुनसान है किधर जाएँ
थोड़ी देर को जी बहला था
आज तो बे-सबब उदास है जी
सूरज सर पे आ पहुँचा
दाएम आबाद रहेगी दुनिया
'नासिर' क्या कहता फिरता है कुछ न सुनो तो बेहतर है
दिल में इक लहर सी उठी है अभी
हमारे घर की दीवारों पे 'नासिर'
न मिला कर उदास लोगों से
तेरी मजबूरियाँ दुरुस्त मगर