सूरज सर पे आ पहुँचा
गर्मी है या रोज़-ए-जज़ा
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
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Gulzar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Parveen Shakir
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पर्दे में हर आवाज़ के शामिल तो वही है
गए दिनों का सुराग़ ले कर किधर से आया किधर गया वो
अकेले घर से पूछती है बे-कसी
अव्वलीं चाँद ने क्या बात सुझाई मुझ को
पहाड़ों से चली फिर कोई आँधी
तन्हाई का दुख गहरा था
दाएम आबाद रहेगी दुनिया
दफ़अ'तन दिल में किसी याद ने ली अंगड़ाई
हमारे घर की दीवारों पे 'नासिर'
आरज़ू है कि तू यहाँ आए
मैं ने जब लिखना सीखा था
कभी ज़ुल्फ़ों की घटा ने घेरा