मुद्दत से कोई आया न गया सुनसान पड़ी है घर की फ़ज़ा
इन ख़ाली कमरों में 'नासिर' अब शम्अ जलाऊँ किस के लिए
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सर में जब इश्क़ का सौदा न रहा
सफ़र-ए-मंज़िल-ए-शब याद नहीं
यूँ तो हर शख़्स अकेला है भरी दुनिया में
मुसलसल बेकली दिल को रही है
कम-फ़ुर्सती-ए-ख़्वाब-ए-तरब याद रहेगी
शबनम-आलूद पलक याद आई
ख़्वाब में रात हम ने क्या देखा
ये आप हम तो बोझ हैं ज़मीन का
वक़्त अच्छा भी आएगा 'नासिर'
तू असीर-ए-बज़्म है हम-सुख़न तुझे ज़ौक़-ए-नाला-ए-नय नहीं
इस शहर-ए-बे-चराग़ में जाएगी तू कहाँ
धूप निकली दिन सुहाने हो गए