ये आप हम तो बोझ हैं ज़मीन का
ज़मीं का बोझ उठाने वाले क्या हुए
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क़फ़स को चमन से सिवा जानते हैं
न मिला कर उदास लोगों से
यूँ किस तरह कटेगा कड़ी धूप का सफ़र
ग़म-फ़ुर्सती-ए-ख़्वाब-ए-तरब याद रहेगी
रह-ए-जुनूँ में ख़ुदा का हवाला क्या करता
दिल धड़कने का सबब याद आया
सारा दिन तपते सूरज की गर्मी में जलते रहे
वक़्त अच्छा भी आएगा 'नासिर'
ओ मेरे मसरूफ़ ख़ुदा
तेरी मजबूरियाँ दुरुस्त मगर
हँसता पानी रोता पानी
आज तो बे-सबब उदास है जी