उन के लब पर ज़िक्र आया बे-हिजाबाना मेरा
मंज़िल-ए-तकमील तक पहुँचा अब अफ़्साना मेरा
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मोहब्बत-आश्ना दिल मज़हब-ओ-मिल्लत को क्या जाने
इक दाग़-ए-दिल ने मुझ को दिए बे-शुमार दाग़
कह रहा है शोर-ए-दरिया से समुंदर का सुकूत
आज़ादियों का हक़ न अदा हम से हो सका
क्या बताऊँ दिल कहाँ है और किस जा दर्द है
मय-कशो मय की कमी बेशी पे नाहक़ जोश है
दिल है किस का जिस में अरमाँ आप का रहता नहीं
ऐ शम्अ' तुझ पे रात ये भारी है जिस तरह
है वही नाज़-आफ़रीं आईना-ए-नियाज़ में
जो मेरे दिल में सहव तिरी याद से हुआ
दिल को हुआ है इश्क़ मोहब्बत के दाग़ से