आज़ादियों का हक़ न अदा हम से हो सका
अंजाम ये हुआ कि गिरफ़्तार हो गए
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दिल है किस का जिस में अरमाँ आप का रहता नहीं
इब्तिदा से आज तक 'नातिक़' की ये है सरगुज़िश्त
कभी दामान-ए-दिल पर दाग़-ए-मायूसी नहीं आया
मिरे मुक़द्दर में जो लिखा था नसीब से वो पहुँच न पाया
जो मेरे दिल में सहव तिरी याद से हुआ
दिल को हुआ है इश्क़ मोहब्बत के दाग़ से
मोहब्बत-आश्ना दिल मज़हब-ओ-मिल्लत को क्या जाने
दिल रहे या न रहे ज़ख़्म भरे या न भरे
इक दाग़-ए-दिल ने मुझ को दिए बे-शुमार दाग़
मय-कशो मय की कमी बेशी पे नाहक़ जोश है
दो आलम से गुज़र के भी दिल-ए-आशिक़ है आवारा
क्या बताऊँ दिल कहाँ है और किस जा दर्द है