मय-कशो मय की कमी बेशी पे नाहक़ जोश है
ये तो साक़ी जानता है किस को कितना होश है
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दिल है किस का जिस में अरमाँ आप का रहता नहीं
दिल रहे या न रहे ज़ख़्म भरे या न भरे
ऐ शम्अ' तुझ पे रात ये भारी है जिस तरह
इब्तिदा से आज तक 'नातिक़' की ये है सरगुज़िश्त
आज़ादियों का हक़ न अदा हम से हो सका
उन के लब पर ज़िक्र आया बे-हिजाबाना मेरा
कह रहा है शोर-ए-दरिया से समुंदर का सुकूत
दो आलम से गुज़र के भी दिल-ए-आशिक़ है आवारा
मिरे मुक़द्दर में जो लिखा था नसीब से वो पहुँच न पाया
दिल को हुआ है इश्क़ मोहब्बत के दाग़ से
मोहब्बत-आश्ना दिल मज़हब-ओ-मिल्लत को क्या जाने