दिल है किस का जिस में अरमाँ आप का रहता नहीं
फ़र्क़ इतना है कि सब कहते हैं मैं कहता नहीं
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मिरे मुक़द्दर में जो लिखा था नसीब से वो पहुँच न पाया
दिल को हुआ है इश्क़ मोहब्बत के दाग़ से
उन के लब पर ज़िक्र आया बे-हिजाबाना मेरा
दो आलम से गुज़र के भी दिल-ए-आशिक़ है आवारा
जो मेरे दिल में सहव तिरी याद से हुआ
ऐ शम्अ' तुझ पे रात ये भारी है जिस तरह
कभी दामान-ए-दिल पर दाग़-ए-मायूसी नहीं आया
दिल रहे या न रहे ज़ख़्म भरे या न भरे
कह रहा है शोर-ए-दरिया से समुंदर का सुकूत
मोहब्बत-आश्ना दिल मज़हब-ओ-मिल्लत को क्या जाने
मिरी जानिब से उन के दिल में किस शिकवे पे कीना है
क्या बताऊँ दिल कहाँ है और किस जा दर्द है