दिल रहे या न रहे ज़ख़्म भरे या न भरे
चारासाज़ों की ख़ुशामद मुझे मंज़ूर नहीं
Gulzar
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इब्तिदा से आज तक 'नातिक़' की ये है सरगुज़िश्त
दिल है किस का जिस में अरमाँ आप का रहता नहीं
मिरे मुक़द्दर में जो लिखा था नसीब से वो पहुँच न पाया
दो आलम से गुज़र के भी दिल-ए-आशिक़ है आवारा
कभी दामान-ए-दिल पर दाग़-ए-मायूसी नहीं आया
उन के लब पर ज़िक्र आया बे-हिजाबाना मेरा
मय-कशो मय की कमी बेशी पे नाहक़ जोश है
कह रहा है शोर-ए-दरिया से समुंदर का सुकूत
इक दाग़-ए-दिल ने मुझ को दिए बे-शुमार दाग़
है वही नाज़-आफ़रीं आईना-ए-नियाज़ में
मोहब्बत-आश्ना दिल मज़हब-ओ-मिल्लत को क्या जाने
आज़ादियों का हक़ न अदा हम से हो सका