इक दाग़-ए-दिल ने मुझ को दिए बे-शुमार दाग़
पैदा हुए हज़ार चराग़ इस चराग़ से
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(517) Peoples Rate This
आज़ादियों का हक़ न अदा हम से हो सका
इब्तिदा से आज तक 'नातिक़' की ये है सरगुज़िश्त
कह रहा है शोर-ए-दरिया से समुंदर का सुकूत
मय-कशो मय की कमी बेशी पे नाहक़ जोश है
मिरे मुक़द्दर में जो लिखा था नसीब से वो पहुँच न पाया
दो आलम से गुज़र के भी दिल-ए-आशिक़ है आवारा
दिल है किस का जिस में अरमाँ आप का रहता नहीं
दिल रहे या न रहे ज़ख़्म भरे या न भरे
मिरी जानिब से उन के दिल में किस शिकवे पे कीना है
है वही नाज़-आफ़रीं आईना-ए-नियाज़ में
क्या बताऊँ दिल कहाँ है और किस जा दर्द है
जो मेरे दिल में सहव तिरी याद से हुआ