मिरा साया मिरे बस में नहीं है
मगर दुनिया पे दावा कर रहा हूँ
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महफ़िलों को गुज़ार पाए हम
नए सफ़र का हर इक मोड़ भी नया था मगर
प्यास को प्यार करना था केवल
भुला दिया है जो तू ने तो कुछ मलाल नहीं
बग़ैर पूछे मिरे सर में भर दिया मज़हब
जिस को अपने बस में करना था उस से ही लड़ बैठा
बैठे-बैठे का सफ़र सिर्फ़ है ख़्वाबों का फ़ुतूर
मकानों के नगर में हम अगर कुछ घर बना लेते
और तो अपनी क़िस्मत में क्या लिक्खा है
हैरत-अंगेज़ हुआ चाहती है
हम तो उस के ज़ेहन की उर्यानियों पर मर मिटे
तमाम ख़ुश्क दयारों को आब देता था