ये सारा क़ज़िया तो हम से है इस से तुम को क्या
तुम अपने एक तरफ़ हो रहो हुआ सो हवा
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बहुतों ने जिसे अर्श पे बे-जान में देखा
तुझ तेग़ की निगह से मिरा कट गया है दिल
जहाँ में जो कई गुल-बदन ख़ुश-नयन है
किया अज़ल से है साने' ने बुत-परस्त मुझे
ज़रा कीजिए ग़ौर हज़रत-सलामत
और सब 'मानी' ने तेरी तो बनाई तस्वीर
दिलदार हुआ ना-ख़ुश अब दिल का ख़ुदा-हाफ़िज़
साने' मिरा वो है कि हो कैसी ही चोब-ए-ख़ुश्क
जावे भी फिर आवे भी कई शक्ल से हर बार
इस माजरा को जा के कहूँ किस के रू-ब-रू
नसीहत से मेरी ये सौ कोस भागे
लोगों के फोड़ता फिरे शीशे