और सब 'मानी' ने तेरी तो बनाई तस्वीर
पर दुरुस्त हो न सकी चेहरे की पर्वाज़ हनूज़
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नागिन है ज़ुल्फ़-ए-यार न ज़िन्हार देखना
किया अज़ल से है साने' ने बुत-परस्त मुझे
जितना कि है इफ़रात तिरी कम-निगही का
लोगों के फोड़ता फिरे शीशे
जो बात मनअ' की है उसे कहिए क्यूँ
पूछे कोई किसी को सो इम्कान ही नहीं
तुझ तेग़ की निगह से मिरा कट गया है दिल
ज़रा कीजिए ग़ौर हज़रत-सलामत
देखा है कहीं गुल ने तुझे जिस की ख़ुशी से
दिलदार हुआ ना-ख़ुश अब दिल का ख़ुदा-हाफ़िज़
आईने से मुझ दल के तहय्युर को मिला देख
ईधर से सेते जाओ और ऊधर से फटता जाए