फूलने-फलने लगे हैं साहब-ए-ज़र और भी

फूलने-फलने लगे हैं साहब-ए-ज़र और भी

तंग हो जाएगी धरती मुफ़लिसों पर और भी

ये ज़मीं ज़रख़ेज़ होगी ख़ून पी कर और भी

खेतियाँ उगला करेंगी लाल-ओ-गौहर और भी

हर ज़माने में सुबूत-ए-इश्क़ माँगा जाएगा

लाल माओं के चढ़ेंगे सूलियों पर और भी

फूलते-फलते हैं जज़्बे दर्द के माहौल में

ज़ख़्म खाएँ तो निखरते हैं सुख़न-वर और भी

आफ़्ताब उभरा है जिस दिन से नई तहज़ीब का

हो गया तारीक इंसाँ का मुक़द्दर और भी

जब चली तहरीक ता'मीर-ए-वतन की दोस्तो

हो गए बर्बाद कुछ बस्ते हुए घर और भी

जिस क़दर बाहर की रौनक़ में मगन होता गया

बढ़ गई बे-रौनक़ी इंसाँ के अंदर और भी

मैं बनाता जा रहा हूँ और भी कुछ आइने

वक़्त बरसाता चला जाता है पत्थर और भी

बस्तियों पर हादसों की चाँद-मारी के लिए

बढ़ रहे हैं औज की जानिब सितमगर और भी

मुनफ़रिद उस्ताद 'दानिश' भी हैं ग़ालिब की तरह

यूँ तो दुनिया में हैं 'नाज़' अच्छे सुख़न-वर और भी

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In Hindi By Famous Poet Naz Naz Khialvi. is written by Naz Naz Khialvi. Complete Poem in Hindi by Naz Naz Khialvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.