Ghazals of Naz Quadri

Ghazals of Naz Quadri
नामनाज़ क़ादरी
अंग्रेज़ी नामNaz Quadri
जन्म की तारीख1940
जन्म स्थानMuzaffarpur

ज़वाल-ए-अज़्मत-ए-इंसाँ का मर्सिया हूँ मैं

तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ओ-ख़याल तक था

सुकूत टूटने वाला है हादसा होगा

सुकूँ न था मगर इतना भी इंतिशार न था

सहन-ए-एहसास में इक नक़्श निहाँ था पहले

सच है जब भी कोई हर्फ़ उस की ज़बाँ से निकला

फिर सियह-पोश हुई शाम नज़र में रखना

न वो शुऊर की लौ है न वो नज़र का चराग़

न कोई तीर न कोई कमान बाक़ी है

ख़्वाह पत्थर ख़्वाह शीशा आदमी

ख़ुश-रंग आसमान उड़ा ले गई हवा

ख़िज़ाँ से जोड़ के रिश्ता बहार का कोई

कर्बला का रास्ता रौशन हुआ

कभी हवा कभी बिजली के हम-रिकाब हुआ

जो सलीब-ए-शब पे गूँजे वो सदा कहिए मुझे

हर एक सम्त उदासी की तितलियाँ जागीं

हादिसा ऐसा भी ज़ेर-ए-आसमाँ होना ही था

गुनाह-गार-ए-वफ़ा लाएक़-ए-सज़ा लिख दो

गोद में ज़र्रात की सर अपना रख कर सो गया

गहे मकाँ से सुनी गाह-ए-ला-मकाँ से सुनी

बर्फ़ के फूल खिले धूप के दाने निकले

बराए नाम सही हासिल-ए-तलब ठहरा

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