अब बच के कहाँ जाए हर इक सम्त है दीवार
बीवी मिरे पीछे है तो बच्चा मिरे आगे
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अजब इक वक़्त गुलशन में ये पैग़ाम-ए-बहार आया
आँखों को अश्क-बार किया क्या बुरा किया
हुस्न को बे-नक़ाब होने दो
याद-ए-माज़ी ये क्या किया तू ने
फ़ुर्क़त का फ़ुसूँ फैल गया शाम से पहले
न हम ने आँख लड़ाई न ख़्वाब में देखा
ज़बाँ क्यूँ हो?
शिकवा-ए-क्लर्क
अपने अश्कों की ये बरसात किसे पेश करूँ
सो अब भी है
जुनून-ए-शौक़ में महव-ए-तमाशा हो गए हम तुम