नज़ीर अकबराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नज़ीर अकबराबादी (page 6)

नज़ीर अकबराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नज़ीर अकबराबादी (page 6)
नामनज़ीर अकबराबादी
अंग्रेज़ी नामNazeer Akbarabadi
जन्म की तारीख1735
मौत की तिथि1830

यार ने हम को अगर रुस्वा कहा अच्छा कहा

याँ तो कुछ अपनी ख़ुशी से नहीं हम आए हुए

यक-ब-यक होगी सियाही इस क़दर जाती रही

वो सनम जो मेहर-एज़ार है उसे हम से मिलने में आर है

वो चाँदनी में जो टुक सैर को निकलते हैं

उस के शरार-ए-हुस्न ने शोअ'ला जो इक दिखा दिया

उस के बाला है अब वो कान के बीच

उसी की ज़ात को है दाइमन सबात-ओ-क़याम

उसी का देखना है ढानता दिल

उधर उस की निगह का नाज़ से आ कर पलट जाना

तुम्हारे हाथ से कल हम भी रो लिए साहिब

टुक होंट हिलाऊँ तो ये कहता है न बक बे

तुझे कुछ भी ख़ुदा का तर्स है ऐ संग-दिल तरसा

तो ही न सुने जब दिल-ए-नाशाद की फ़रियाद

थी छोटी उस के मुखड़े पर कल ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल और तरह

तिरी क़ुदरत की क़ुदरत कौन पा सकता है क्या क़ुदरत

तिरे मरीज़ को ऐ जाँ शिफ़ा से क्या मतलब

तेरे भी मुँह की रौशनी रात गई थी मह से मिल

तन पर उस के सीम फ़िदा और मुँह पर मह दीवाना है

तदबीर हमारे मिलने की जिस वक़्त कोई ठहराओगे तुम

सुनिए ऐ जाँ कभी असीर की अर्ज़

शोर आहों का उठा नाला फ़लक सा निकला

शेवा-ए-नाज़ होश छल जाना

शहर-ए-दिल आबाद था जब तक वो शहर-आरा रहा

शब-ए-मह में देख उस का वो झमक झमक के चलना

सेहन-ए-गुलशन में चली फिर के हवा बिस्मिल्लाह

सज़ा-वार-ए-अरे-आरे हुए हैं

सरापा हुस्न-ए-समधन गोया गुलशन की क्यारी है

साक़ी ज़ुहूर-ए-सुब्ह ओ तरश्शह है नूर का

साक़ी ये पिला उस को जो हो जाम से वाक़िफ़

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