नज़ीर अकबराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नज़ीर अकबराबादी (page 8)
नाम | नज़ीर अकबराबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Nazeer Akbarabadi |
जन्म की तारीख | 1735 |
मौत की तिथि | 1830 |
न मैं दिल को अब हर मकाँ बेचता हूँ
न मह ने कौंद बिजली की न शोले का उजाला है
न लज़्ज़तें हैं वो हँसने में और न रोने में
न दिल में सब्र न अब दीदा-ए-पुर-आब में ख़्वाब
न आया आज भी सब खेल अपना मिट्टी है
मुंतज़िर उस के दिला ता-ब-कुजा बैठना
मुँह से पर्दा न उठे साहब-ए-मन याद रहे
मुझे इस झमक से आया नज़र इक निगार-ए-रा'ना
मिज़्गाँ वो झपकता है अब तीर है और मैं हूँ
मियाँ दिल तुझे ले चले हुस्न वाले
मिला मुझ से वो आज चंचल छबीला
मिल कर सनम से अपने हंगाम-ए-दिल-कुशाई
मिरा ख़त है जहाँ यारो वो रश्क-ए-हूर ले जाना
मिरा दिल है मुश्ताक़ उस गुल-बदन का
मानी ने जो देखा तिरी तस्वीर का नक़्शा
महफ़िल में हम थे इस तरफ़ वो शोख़ चंचल उस तरफ़
मह है अगर जू-ए-शीर तुम भी ज़री-पोश हो
लो न हँस हँस के तुम अग़्यार से गुल-दस्तों से
लिपट लिपट के मैं उस गुल के साथ सोता था
लेता है जान मेरी तो में सर-ब-दस्त हूँ
ले के दिल मेहर से फिर रस्म-ए-जफ़ा-कारी क्या
लावे ख़ातिर में हमारे दिल को वो मग़रूर क्या
क्यूँ न हो बाम पे वो जल्वा-नुमा तीसरे दिन
क्या नाम-ए-ख़ुदा अपनी भी रुस्वाई है कम-बख़्त
क्या कासा-ए-मय लीजिए इस बज़्म में ऐ हम-नशीं
क्या कहीं दुनिया में हम इंसान या हैवान थे
क्या दिन थे वो जो वाँ करम-ए-दिल-बराना था
क्या अदा किया नाज़ है क्या आन है
कुलाल-ए-गर्दूं अगर जहाँ में जो ख़ाक मेरी का जाम करता
कुछ तो हो कर दू-बदू कुछ डरते डरते कह दिया