नज़ीर अकबराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नज़ीर अकबराबादी (page 3)
नाम | नज़ीर अकबराबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Nazeer Akbarabadi |
जन्म की तारीख | 1735 |
मौत की तिथि | 1830 |
मैं हूँ पतंग-ए-काग़ज़ी डोर है उस के हाथ में
मैं हूँ पतंग-ए-काग़ज़ी डोर है उस के हाथ में
मैं दस्त-ओ-गरेबाँ हूँ दम-ए-बाज़-पुसीं से
मय पी के जो गिरता है तो लेते हैं उसे थाम
मय भी है मीना भी है साग़र भी है साक़ी नहीं
लिख लिख के 'नज़ीर' इस ग़ज़ल-ए-ताज़ा को ख़ूबाँ
क्यूँ नहीं लेता हमारी तू ख़बर ऐ बे-ख़बर
कुछ हम को इम्तियाज़ नहीं साफ़ ओ दुर्द का
कूचे में उस के बैठना हुस्न को उस के देखना
कोई तो पगड़ी बदलता है औरों से लेकिन
कितना तनिक सफ़ा है कि पा-ए-निगाह का
किस को कहिए नेक और ठहराइए किस को बुरा
ख़ुदा के वास्ते गुल को न मेरे हाथ से लो
ख़फ़ा देखा है उस को ख़्वाब में दिल सख़्त मुज़्तर है
कमाल-ए-इश्क़ भी ख़ाली नहीं तमन्ना से
कल शब-ए-वस्ल में क्या जल्द बजी थीं घड़ियाँ
कल 'नज़ीर' उस ने जो पूछा ब-ज़बान-ए-पंजाब
कल बोसा-ए-पा हम ने लिया था सो न आया
कहीं बैठने दे दिल अब मुझे जो हवास टुक मैं बजा करूँ
जुदा किसी से किसी का ग़रज़ हबीब न हो
जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उस से सदा राज़ी है
जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उस से सदा राज़ी है
जितने हैं कुश्तगान-ए-इश्क़ उन के अज़ल से हैं मिले
जिस्म क्या रूह की है जौलाँ-गाह
जिसे मोल लेना हो ले ले ख़ुशी से
जिस काम को जहाँ में तू आया था ऐ 'नज़ीर'
जा पड़े चुप हो के जब शहर-ए-ख़मोशाँ में 'नज़ीर'
इश्क़ का दूर करे दिल से जो धड़का तावीज़
हुस्न के नाज़ उठाने के सिवा
हम वो दरख़्त हैं कि जिसे दम-ब-दम अजल