जितने हैं कुश्तगान-ए-इश्क़ उन के अज़ल से हैं मिले
अश्क से अश्क नम से नम ख़ून से ख़ून गिल से गिल
Allama Iqbal
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जिस काम को जहाँ में तू आया था ऐ 'नज़ीर'
हस्तियाँ नीस्तियाँ याँ भी हैं ऐसी जैसे
उधर उस की निगह का नाज़ से आ कर पलट जाना
अबस मेहनत है कुछ हासिल नहीं पत्थर-तराशी से
इधर यार जब मेहरबानी करेगा
पैसा
चितवन में शरारत है और सीन भी चंचल है
दिल की बे-ताबी ठहरने नहीं देती मुझ को
ऐ दिल अपनी तू चाह पर मत फूल
कहा जो हम ने ''हमें दर से क्यूँ उठाते हो''
दिल को ले कर हम से अब जाँ भी तलब करते हैं आप
कल 'नज़ीर' उस ने जो पूछा ब-ज़बान-ए-पंजाब