कोई तो पगड़ी बदलता है औरों से लेकिन
मियाँ 'नज़ीर' हम अब तुम से तन बदलते हैं
Anwar Masood
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Gulzar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(295) Peoples Rate This
किस को कहिए नेक और ठहराइए किस को बुरा
जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उस से सदा राज़ी है
शहर में लगता नहीं सहरा से घबराता है दिल
'नज़ीर' अब इस नदामत से कहूँ क्या
देख ले जो आलम उस के हुस्न-ए-बाला-दस्त का
हूँ तेरे तसव्वुर में मिरी जाँ हमा-तन-चश्म
बदन गुल चेहरा गुल रुख़्सार गुल लब गुल दहन है गुल
दीवानगी मेरी के तहय्युर में शब-ओ-रोज़
रहे जो शब को हम उस गुल के सात कोठे पर
रखते हैं जो हम चाह तुम्हारी दिल में
देखे न मुझे क्यूँकर अज़-चश्म-ए-हिक़ारत-ऊ
सनम के कूचे में छुप के जाना अगरचे यूँ है ख़याल दिल का