दिल देख उसे जिस घड़ी बे-ताब हुआ
और चाह-ए-ज़क़न से मिस्ल-ए-गिर्दाब हुआ
की अर्ज़ कि बे-क़रार दिल है तो कहा
अब दिल न कहो उसे जो सीमाब हुआ
Anwar Masood
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देख ले जो आलम उस के हुस्न-ए-बाला-दस्त का
बैठो याँ भी कोई पल क्या होगा
शब को आ कर वो फिर गया हैहात
उस बेवफ़ा ने हम को अगर अपने इश्क़ में
क्या हाल अब उस से अपने दिल का कहिए
कहा था हम ने तुझे तो ऐ दिल कि चाह की मय को तू न पीना
साक़ी शराब है तो ग़नीमत है अब की अब
जब आँख उस सनम से लड़ी तब ख़बर पड़ी
जाड़े की बहारें
बहर-ए-हस्ती में सोहबत-ए-अहबाब
ये दिल-ए-नादाँ हमारा भी अजब दीवाना था
पुकारा क़ासिद-ए-अश्क आज फ़ौज-ए-ग़म के हाथों से