ऐ दिल जो ये आँख आज लड़ाई उस ने
और पल में लड़ा के फिर झुकाई उस ने
अपनी बेबाकी और हया की ख़ूबी
थी हम को दिखानी सो दिखाई उस ने
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दरिया ओ कोह ओ दश्त ओ हवा अर्ज़ और समा
कभी तो आओ हमारे भी जान कोठे पर
दिल देख उसे जिस घड़ी बे-ताब हुआ
आरज़ू ख़ूब है मौक़ा से अगर हो वर्ना
न आया आज भी सब खेल अपना मिट्टी है
किधर है आज इलाही वो शोख़ छल-बलिया
जाँ भी ब-जाँ है हिज्र में और दिल फ़िगार भी
बैठो याँ भी कोई पल क्या होगा
मियाँ दिल तुझे ले चले हुस्न वाले
कल उस के चेहरे को हम ने जो आफ़्ताब लिखा
ख़फ़ा देखा है उस को ख़्वाब में दिल सख़्त मुज़्तर है
दिल हम ने जो चश्म-ए-बुत-ए-बेबाक से बाँधा