अब के बार मैं तुझ से मिलने नहीं आया
तुझ को अपने साथ ले जाने आया हूँ
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दुआ का फूल पड़ा रह गया है थाली में
पुरानी मिट्टी से पैकर नया बनाऊँ कोई
कभी हँस कर कभी आँसू बहा कर देख लेता हूँ
साहिल की रेत चाँद के मुँह पर न डालिए
रंग लाई है हसरत-ए-तामीर
पत्थर होता जाता हूँ
कौन हूँ क्यूँ ज़िंदा हूँ सोचता रहता हूँ
दिल-तंग हूँ मकान के अंदर पड़ा हुआ
मेरी आँखों को मिरी शक्ल दिखा दे कोई
जागते हैं सोते हैं
उभर रहे हैं कई हाथ शब के पर्दे से
बिखर के जाता कहाँ तक कि मैं तो ख़ुशबू था