घास पर खेलता है इक बच्चा
पास माँ बैठी मुस्कुराती है
मुझ को हैरत है जाने क्यूँ दुनिया
काबा ओ सोमनात जाती है
Habib Jalib
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एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
दिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती
नई नई आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
सफ़र को जब भी किसी दास्तान में रखना
मोहब्बत
ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई
कल रात
किसी भी शहर में जाओ कहीं क़याम करो
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
तू क़रीब आए तो क़ुर्बत का यूँ इज़हार करूँ
दरिया हो या पहाड़ हो टकराना चाहिए